गणेश जी की महिमा, देखें तो सही श्रीगणेश की यह प्रेरक कथा
श्रीगणेश हमारे आस-पास ही हैं श्रद्धा पूर्वक मन की आँखों से देखो

एक गरीब व्यक्ति काम की तलाश मे शहर गया था। उसकी पत्नी को खाने के लाले पड़ गए। वह बैठी गणेशजी को याद करती रहती। अमीर भाई की पत्नी को उसकी कोई परवाह नहीं थी। अचानक उस इलाके में एक बच्चा आया। उसके हाथ में एक चम्मच था, जिसमें चावल के दो दाने और जरा सा दूध था। वह सबसे कह रहा था- ‘मेरे लिए खीर बना दो।’ सभी उसकी हंसी उड़ा रहे थे।
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अमीर भाई की पत्नी ने भी उसे टाल दिया। वह गरीब भाई की पत्नी के पास पहुंचा तो उसने बाखुशी बात मान ली। बच्चा बोला- ‘खीर बड़े बर्तन में बनाना।’ बड़े बर्तन में चम्मच के चावल और दूध डाले तो बर्तन भर गया। वह खीर बनाती रही। बच्चा खड़ा देखता रहा । बन गई 1 तो बोला- ‘पहले मैं खाऊंगा। ‘कटोरा भर खीर उसे देकर वह अपनी जेठानी को भी देने चली गई।
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खीर देखी तो जेठानी हैरान- ‘घर में तो दाने नहीं हैं, खीर कहां से बना ली?’ देवरानी ने पूरे इलाके में खीर बांट दी, लेकिन खीर खत्म ही न हो रही थी। यह देख बच्चे के वेश में आए गणेशजी ने कहा- ‘जरासी खीर आग में डालो और बर्तन उलट दो।’ ऐसा करते ही बर्तन खाली हो गया। दूसरे दिन गणेशजी को याद कर देवरानी ने फिर दो दाने चावल और जरा सा दूध डाला तो ढेर सारी खीर बन गई। वह समझ गई कि यह गणेश जी की महिमा है। भगवान् तो हमारे आस-पास ही होते हैं, किंतु हम उन्हें देख नहीं पाते।
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भक्ति सिद्ध प्रिय रूप में तो श्रीगणेश का चेहरा शांत, प्रसन्न चन्द्रमा की तरह आलोकित लगता है। ये रंग-बिरंगे, महकते फूलों से सजे होते हैं। चारों हाथों में केला, आम, दूध, मिठाई से भरा पात्र होता है। यह रूप इनके उपासकों, भक्तों, साधकों पर आशीर्वाद की वर्षा करता हैं। पूजा स्थान में इस मुद्रा के श्रीगणेश की प्रतिमा अतिशुभ, मांगलिक, समृद्धिदायक होगी। तरूण सिद्धिदाता श्रीगणेश आठ भुजाओं वाले होते हैं। इनके प्रत्येक हाथ में लडडू, परशा या अंकुश, फंदा, बेल, हाथी दांत, धान तथा गन्ना होता है। प्रतिमा का रंग लाल होता है। यह श्रीगणेश की तरुण, युवा अवस्था का द्योतक है। यों श्रीगणेश के कई अन्य शुभ रूप हैं। यही एक ऐसे देव हैं जिनके हाथों में चित्रकारों ने वायलिन, बांसुरी थमा दी तो कभी फलों, पत्तों अन्य विविध आधुनिक रूपों में दर्शित कर दिया।
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