धर्म

Pratham avtar: माँ शैलपुत्री की महिमा की पुण्य कथा

Pratham avtar Shailpurti

देवी दुर्गा ने अपने भक्तों के कल्याण के लिए पृथ्वी पर नौ अवतार लिए थे, जिन्हें नवदुर्गा भी कहा जाता है। इनमें सबसे पहला अवतार Pratham avtar देवी शैलपुत्री का है।

देवी दुर्गा के प्रथम स्वरूप Pratham avtar ‘शैलपुत्री’ का अर्थ है, पर्वत की पुत्री या पहाड़ों की बेटी।

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इन नौ अवतारों में से देवी दुर्गा के इस अवतार की कहानी, माता सती के आत्मदाह से जुड़ी हुई है। तो आइए जानते हैं, माँ शैलपुत्री की महिमा की पुण्य कथा

प्रथम अवतार Pratham avtar मां शैलपुत्री

देवी दुर्गा के इस प्रथम अवतार Pratham avtar की पूजा, नवरात्रि के पहले दिन बड़े धूमधाम से की जाती है। देवी दुर्गा के प्रथम स्वरप, शैलपुत्री को शांति और सौभाग्य की देवी माना जाता है। देवी शैलपुत्री का स्वरूप भी अत्यंत मनोरम है। देवी के बाएं हाथ में कमल का पुष्प सुसज्जित है, तो वहीं उन्होंने अपने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण किया है। देवी शैलपुत्री का वाहन वृषभ यानी बैल है, इसलिए उन्हें वृषारूढ़ा भी कहा जाता है। उनकी महिमा कथा का उल्लेख नवदुर्गा पुराण में भी मिलता है।

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Pratham avtar: माँ शैलपुत्री की महिमा की पुण्य कथा
Pratham avtar: माँ शैलपुत्री की महिमा की पुण्य कथा

और यूँ हुआ pratham avtar का जन्म

पुराणों में निहित कथा के अनुसार, प्रजापति दक्ष अपने दामाद भगवान शिव के प्रति अत्यंत क्रोध और ईर्ष्या का भाव रखते थे। एक बार, उन्होंने कनखल में एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया और सभी देवताओं को उसमें शामिल होने का निमंत्रण भेजा, लेकिन दक्षराज ने अपनी पुत्री सती और उनके पति शिव को इस यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया। इस यज्ञ के बारे में जब देवी सती को पता चला, तो वह वहां पहुंची और दक्ष से शिव को निमंत्रण न भेजने का कारण पूछा। इस पर प्रजापति दक्ष ने सती का घोर अपमान किया और महादेव के बारे में कई अनुचित शब्द भी कहे। देवी सती अपने पति का ऐसा अपमान सह नहीं पाईं और उन्होंने, उसी यज्ञ की अग्नि में अपनी देह त्याग दी।

जब दैत्यों ने मचाया उत्पात

देवी सती के इस तरह आत्मदाह करने के बाद, भगवान शिव उन्माद से हो गए और कैलाश भी श्री हीन हो गया। सभी देवताओं को महादेव की ऐसी हालत देखकर अत्यंत चिंता होने लगी, लेकिन दैत्यों को महादेव की दशा पर बहुत आनंद आ रहा था और उन्होंने मौके का फायदा उठाते हुए, स्वर्गलोक में उपद्रव मचाना शुरू कर दिया था। तब सभी देवताओं ने त्रस्त होकर, आदिशक्ति का ध्यान किया और उनसे देवगणों की रक्षा करने की प्रार्थना की। देवी आदिशक्ति ने तब सभी देवताओं को यह कहते हुए आश्वस्त किया, कि वह बहुत जल्द राजा हिमवान के घर कन्या रूप में जन्म लेंगी।

प्रथम अवतार Pratham avtar की कहानी

दूसरी तरफ़, पर्वतराज हिमालय और उनकी पत्नी मैनावती की कोई भी संतान नहीं थी, इसलिए उन दोनों ने भी आदिशक्ति की आराधना करते हुए, उनसे संतान प्राप्ति का वर मांगा। पर्वतराज और उनकी पत्नी की तपस्या से प्रसन्न होकर, आदिशक्ति ने उन्हें यह आशीर्वाद दिया, कि वह स्वयं उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लेंगी। कालांतर में जब देवी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया, तो पर्वत की पुत्री होने के कारण उनका नाम पार्वती, शैलपुत्री और गिरिजा पड़ा। बचपन से ही देवी शैलपुत्री, महादेव को ही अपना सर्वस्व मानती थीं और देवर्षि नारद के कहने पर वह शिव को पाने की तपस्या करने के लिए, जंगल में चली गईं थी।

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और यूँ हुआ महादेव से मिलन

उस वक्त, कोई भी देवी के pratham avtar प्रथम अवतार शैलपुत्री को उनकी तपस्या से विचलित नहीं कर पा रहा था। तब स्वयं महादेव ने उनके प्रेम की परीक्षा लेने के लिए, सप्तऋषियों को शैलपुत्री के पास भेजा। सप्तऋषियों ने वहाँ जाकर, महादेव के बारे में बहुत बुरा भला कहा, कि वे तो अघोरी हैं, जटाधारी हैं इत्यादि, लेकिन शैलपुत्री पर इन बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा और वह अपनी तपस्या में लीन रहीं। उनकी ऐसी अडिग भक्ति और प्रेम को देख सप्तऋषि बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने कैलाश आकर सारा वृत्तांत महादेव को सुनाया। इसके बाद, महादेव ने देवी को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करने का निश्चय कर लिया और सप्तऋषियों ने उनके विवाह का शुभ लग्न तय कर दिया।

इस तरह करें pratham avtar को प्रसन्न

हिंदू धर्म में नवरात्रि के त्योहार का काफ़ी महत्व होता है और इसे मुख्य रूप से साल में दो बार मनाया जाता है, पहला चैत्र के महीने में और दूसरा आश्विन के महीने में। इस दौरान माता के भक्त उनके मंत्र का जाप करके उनकी आराधना करते हैं। देवी शैलपुत्री की आराधना पूजा के दौरान दुर्गा स्तोत्र, सप्तशती और चालीसा इत्यादि का पाठ भी किया जाता है।
देवी शैलपुत्री की आराधना का मंत्र है –

“ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः”

अर्थात,
ओम कारमय दिव्य तेज की धारी माता शैलपुत्री को हम सभी भक्त अपने तीनो योग अर्थात मनोयोग, वचन योग और काय योग यानी शरीर से नमस्कार करते हैं।

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इस मंत्र की आराधना से देवी का prtham avtar सभी भक्तों को मनोवांछित वर देने वाली है। ऐसी मान्यता है, कि देवी शैलपुत्री को सफेद वस्तुएं अत्यंत प्रिय हैं, इसलिए उनकी पूजा में सफेद फूलों और मिठाइयों का भोग लगाया जाता है। मान्यता तो यह भी है, कि काशी में देवी शैलपुत्री का एक प्राचीन मंदिर स्थित है, जहाँ माता के दर्शन मात्र से भक्तों की सभी मन्नतें पूरी होती हैं। जो भी सच्चे मन से देवी की आराधना करता है, उसे माता की कृपा से यश और कीर्ति की प्राप्ति होती है।

विशेष: देवी शैलपुत्री अवतार की कहानी हमें यह सीख देती है, जिस प्रकार देवी शैलपुत्री ने सप्तऋषियों की सारी बातों के बावजूद महादेव को पाने का रास्ता नहीं छोड़ा, उसी तरह मनुष्य को भी धर्म और भक्ति का रास्ता कभी नहीं छोड़ना चाहिए।

Disclaimer: यहां खबर सिर्फ धार्मिक मान्यताओं और देवी महिमा के अलावा प्राचीन मान्यताओं से मिली जानकारियों पर आधारित है. www.newsmerchants.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले ज्योतिषाचार्यों और कर्मकांड विशेषज्ञों से सलाह जरुर लें.

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