धर्म

RADHA ASTAMI : यहाँ पढ़ें राधा अष्टमी का महत्व और पूजन विधि

शास्त्रों में श्रीकृष्ण की प्राण प्रिया के रूप में वर्णित, RADHA ASTAMI राधा रानी की जन्मतिथि, श्रीकृष्ण के जन्म के पंद्रह दिन बाद मनाई जाती है, जिसे राधा अष्टमी  कहते हैं। क्या आप जानते हैं, राधा अष्टमी के पर्व का क्या महत्व है, और इस पर्व को इस नाम से क्यों मनाया जाता है? अगर नहीं, तो आइए हम आपको इस महत्वपूर्ण जानकारी से अवगत कराते हैं।

हिंदू धर्म में राधा अष्टमी RADHA ASTAMI के पर्व का अनूठा महत्व है। कहा जाता है, कि इसी दिन राधा रानी का प्रकट हुईं थीं। ऐसी मान्यता है, कि जिस दिन वृषभानु जी को एक तालाब के मध्य खिले, कमल के पुष्प के बीच नन्हीं राधा जी मिलीं थीं, वह तिथि अष्टमी ही थी। तभी से अष्टमी तिथि को राधा जयंती का पर्व मनाया जाता है। इस दिन, राधा रानी के साथ श्रीकृष्ण की पूजा का भी विशेष महत्व है।

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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, राधा अष्टमी RADHA ASTAMI के दिन व्रत पालन कर, राधा-कृष्ण की पूजा करने से भगवान श्रीकृष्ण प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोवांछाएं भी पूर्ण होती हैं। साथ ही, इस व्रत के विधिवत पालन से, गृहस्थी में सुख-सौभाग्य और समृद्धि की भी वृद्धि होती है। इतना ही नहीं, राधा अष्टमी की तिथि पर मध्याह्न काल यानी दोपहर के समय, श्रीकृष्ण और राधा जी की पूजा करने को अत्यंत लाभदायी माना गया है।

राधा अष्टमी की शुभ तिथि

श्री राधा अष्टमी RADHA ASTAMI का पर्व, भाद्रपद महीने के शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष यह पर्व 4 सितंबर, 2022 को मनाया जाएगा।

  1. आरंभ: 3 सितंबर, 2022 के दोपहर 12:28 मिनट पर होगा।
  2. समापन: 4 सितंबर, 2022 की सुबह 10:39 मिनट को समाप्त होगी।

राधा अष्टमी पूजा की विधि

राधा अष्टमी के व्रत पालन का सबसे पहला चरण होता है, सुबह उठकर स्नान करना और उसके तत्पश्चात, पूजा स्थल की साफ-सफाई।
अगर आप व्रती हैं, तो इस दिन प्रातःकाल में उठकर, स्नान करें, स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पूजा स्थल की सफाई कर लें।
यह पूजा दोपहर में की जाती है, लेकिन आप सुबह ही पूजा के लिए चौकी स्थापित कर लें।

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चौकी की स्थापना के लिए

सबसे पहले चौक या रंगोली बनाएं
अब इसपर चौकी रखें
फिर चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछा दें।
चौकी पर आप भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी का चित्र स्थापित करें और इसके बाद चौकी पर अक्षत रखें और इसके ऊपर कलश की स्थापना करें।

कलश की स्थापना के लिए

  1. आप एक कलश लें और उसके मुख पर मौली बांधें
  2. फिर इस कलश पर स्वास्तिक बनाएं।
  3. कलश में जल, गंगा जल, हल्दी की गांठ, सुपारी, अक्षत, रोली और सिक्का डाल दें।
  4. अब कलश के मुख पर आम के पत्ते रखें
  5. उसके ऊपर चावल से भरी एक कटोरी रख दें।
  6. अब भक्तजन आम के पत्तों पर और चावल से भरी कटोरी पर चंदन रोली लगाएं।
  7. इसके बाद कलश पर रखी इस कटोरी पर राधा जी और कृष्ण जी की प्रतिमा विराजित करें।

अगर आपके घर में लड्डू गोपाल हैं तो उनका भी श्रृंगार करें और उन्हें पूजन स्थल पर विराजित करें। साथ में गणपति जी को स्थापित करना ना भूलें, क्योंकि सबसे पहले उन्हीं की पूजा की जाएगी। भगवान गणेश जी को सुपारी, पान, अक्षत, दूर्वा और पुष्प अवश्य अर्पित करें।

सभी प्रतिमाओं की भगवान जी की स्थापना के बाद, सभी पर गंगाजल छिड़कें और चंदन-रोली का तिलक लगाएं। इसके बाद आप भगवान जी राधा जी और कृष्ण जी को अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, मौली, समेत पूर्ण सामग्री अर्पित करें।

इस दिन राधा रानी को चढ़ाया जाने वाला भोग भी काफी खास होता है, इसमें दही की अरबी, पूड़ी, खीर आदि जैसे पकवान शामिल होते हैं। भगवान गणेश जी को बिना तुलसी दल के भोग अर्पित करें। पूजा के अंतिम चरण में भगवान जी की आरती उतारें और अपनी गलतियों की क्षमा मांगे। पूजा के बाद सभी लोगों में प्रसाद वितरित करें और अगर आप व्रत रख रहें हैं तो पूरे दिन व्रत का पालन करें।

भगवान श्री कृष्ण के जन्म, यानी जन्माष्टमी के 15 दिन बाद ही, राधा अष्टमी RADHA ASTAMI का पर्व आता है। ऐसा कहते हैं, कि जहां कृष्ण हैं, वहां राधा भी सदैव होंगी। तो आइए, आज हम आपको इन्हीं राधा रानी के, कुछ ऐसे रहस्य और तथ्यों से परिचित कराएं, जो शायद काफ़ी कम लोगों को ही ज्ञात होंगे।

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1. राधा रानी को राधिका, माधवी, केशवी और रासेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है।

2. पुराणों के अनुसार, भगवान कृष्ण स्वयं विष्णु जी के अवतार थे, साथ ही मान्यता यह भी है कि देवी लक्ष्मी ने राधा रानी के रूप में धरती पर अवतार लिया था।

3. राधा को वृंदावनेश्वरी, यानी श्री वृंदावन धाम की रानी भी कहा जाता है, जो ग्वालों और वृंदावन-बरसाना की रानी के रूप में प्रकट हुईं थीं।

4. राधा-कृष्ण को हमेशा, एक ही माना गया है। अनेकों किवदंतियों में ऐसा भी विदित है, कि जब राधा रानी ने श्री कृष्ण से पूछा था, कि वह उनसे शादी क्यों नहीं कर सकते? तब श्री कृष्ण ने उनसे कहा था, कि “शादी दो आत्माओं का मिलन है। आप और मैं, एक ही आत्मा हैं। ऐसे में, मैं अपनी आत्मा से शादी कैसे कर सकता हूं?”

5. ब्रह्मवैवर्त पुराण में राधा रानी को भी श्रीकृष्ण की तरह ही अनादि और अजन्मी बताया गया है।

6. ब्रह्मवैवर्त पुराण और गर्ग संहिता के अनुसार राधा और कृष्ण का विवाह भगवान ब्रह्मा जी की उपस्थिति में वृंदावन के पास भंडारवन नामक जंगल में हुआ था।

7. राधा चालीसा में ये उल्लेख किया गया है, कि श्री कृष्ण हमेशा सच्चे मन से ‘राधा’ का जाप करने वाले मनुष्यों का साथ देते हैं।

तो यह थी, राधा रानी से जुड़ी कुछ अत्यंत रोचक और सुंदर बातें। आशा करते हैं, कि इन्हें जानकर, आपका ह्रदय भी तृप्ति का अनुभव कर रहा होगा।

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